Sunday 31 July 2016

मच्छर चालीस / मच्छर महिमा

च्छर चालीसा और मच्छर महिमा

जय मच्छर बलवान उजागर, जय अगणित रोगों के सागर ।

कूड़ै करकट में निवास तुम्हारा,गंदगी में आवागमन तुम्हारा।

गुप्त रूप घर तुम आ जाते, सब जगह तुम गंदकी फैलाते ।

पहले मधुर मधुर खुजलाहट लाते, जिसका खाते उसे ही रोग दे जाते ।

हो मलेरिया,डेंगू के तुम दाता, खटमल भी तुम्हारे बाद आता ।

सभी जगह तुम आ जाते, बिना इजाजत के घुस जाते ।

कोई जगह न ऐसी छोड़ी, जहां रिश्तेदारी न जोड़ी-तोड़ी।

जनता तुम्हें खूब पहचाने, नगर पालिका भी तूमको माने ।

भेद भाव नहीं तुमको भावे, प्रेम तुम्हारा हिन्दू मुस्लिम सब पावै ।

रूप कुरूप न तुमने जाना, छोटा बड़ा न तुमने माना ।

जिस घर में तुम आते, दुःख देते सब सुख हर लेते ।

भिन्न भिन्न जब राग सुनाते, ढोलक पेटी तक शर्माते ।

करते हो निरंतर मच्छर क्रीड़ा, पाते हो सदा दुःख और पीड़ा,

जो मच्छर ने घर में गुसाये , होय दुःखी-रोग सदा निश्चित पाये।

जिन लोगन विस्वास न आये इन माचर् ने अपने घर जरूर गुसाये