मच्छर चालीसा और मच्छर महिमा
जय मच्छर बलवान उजागर, जय अगणित रोगों के सागर ।
कूड़ै करकट में निवास तुम्हारा,गंदगी में आवागमन तुम्हारा।
गुप्त रूप घर तुम आ जाते, सब जगह तुम गंदकी फैलाते ।
पहले मधुर मधुर खुजलाहट लाते, जिसका खाते उसे ही रोग दे जाते ।
हो मलेरिया,डेंगू के तुम दाता, खटमल भी तुम्हारे बाद आता ।
सभी जगह तुम आ जाते, बिना इजाजत के घुस जाते ।
कोई जगह न ऐसी छोड़ी, जहां रिश्तेदारी न जोड़ी-तोड़ी।
जनता तुम्हें खूब पहचाने, नगर पालिका भी तूमको माने ।
भेद भाव नहीं तुमको भावे, प्रेम तुम्हारा हिन्दू मुस्लिम सब पावै ।
रूप कुरूप न तुमने जाना, छोटा बड़ा न तुमने माना ।
जिस घर में तुम आते, दुःख देते सब सुख हर लेते ।
भिन्न भिन्न जब राग सुनाते, ढोलक पेटी तक शर्माते ।
करते हो निरंतर मच्छर क्रीड़ा, पाते हो सदा दुःख और पीड़ा,
जो मच्छर ने घर में गुसाये , होय दुःखी-रोग सदा निश्चित पाये।
जिन लोगन विस्वास न आये इन माचर् ने अपने घर जरूर गुसाये